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लैला मजनू का किस्सा

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ख़ुशी मिली थी मुझे

शक नही होने दिया अपनी बेबफाई का

अच्छा कौन है

कोई नहीं समझेगा मेरा गम

और लो आज मैं फिर रो गया

मुझे नहीं समझ आता यह प्यार

My first Poem

मेरी नज़रों से वो गिरने बाला है

इश्क़ का हारा

दुश्मन-ए-इश्क़ कोड़े बरसा रहे थे